Friday, September 9, 2016

मुझे नहीं पता के मेरी हदें बढ़ गयीं या मेरे शहर की सरहदें बढ़ गई ।
कहने को तो मैं पर्यटन की सेवाओँ में पिछले 10 सालो से हूँ पर बुंदेलखंड मेरी नज़र में चन्देरी से शुरू हो कर ओरछा पे ख़त्म हो जाया करता था, पर पिछले कुछ अरसे से ऐसा नहीं है और इस बात का ज़िम्मेदार मैं कुछ लोगों और कुछ कहानियों को मानता हु ।
कहानियाँ तो मई भी बोहत सुनाता हु मेरे मेहमानो को जो चन्देरी देखने आते हैं पर इस बार कुछ अलग हुआ, एक मेहमान के साथ सफ़र पे मेरा रुख खुजराहो की तरफ था और इस सफ़र के दरम्यान मेरा गुज़र हुआ असली बुंदेलखंड से या कहिये मेरा तार्रुफ़ हुआ बुंदेलखंड से। खुजराहो जाने के लिये जो रास्ता हमने लिया वो चन्देरी से शुरू हुआ दरम्यान में टीकमगढ़ जतारा और कई छोटे बड़े गाओं से होकर गुज़रा और यकीन मानिये इस सफ़र ने मेरा नजरिया हे तब्दील कर दिया अपने घर आँगन के बारे में। क्या क्या खूबसूरत महलों को देखने का मौका मिला शायद ही अल्फाज़ो में बयाँ कर पाउँगा और एक बात हुई अब मैं कहानियाँ सुनाता नहीं दिखाता हूँ बुंदेलखंड के रूप में।
तो वक़्त निकाल के आइये और कुछ दिन गुजारिये मेरे और मेरे बुंदेलखंड के साथ और यकीन मानिये एक जादुई तजुर्बा लेकर लौटेंगे आप अपनी दुनिया में वादा है मेरा।
आपका दोस्त।
नदीम जाफ़री।

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